Boiling water does not reflect your face (your misdeed is not visible to you)

Usha Kiran Atram

We were like a beehive
Content, satisfied, happy and free on our own
But the strangers from outside
They looted us, divided us
Destroyed our home
Divided us into many parts
Raised the walls of caste.
Now it is not easy to pull them down,
But it not impossible
We have to rejoin these broken pieces
and make them shine like pieces of silver
The collectivism, freedom and egalitarianism
is an integral part of our culture.

No one can divide us
You may hit the waves of water umpteen times
But they will never break
People of all Aboriginal cultures of the world
Were one and will remain one
We will make bodkins from our bones
And stitch together every piece
We will pierce our skin
And fill these pieces with the colour of our blood
We will build
A new home for ourselves 
We have to tread cautiously, holding hands
We shouldn't slip, we shouldn't fear
They are misleading you
Be cautious
They want to slice and twist and destroy us
They brand us as Naxalites, thieves, looters and dacoits
Why don't they think 
Of survivors on the crumbs of others
The destroyers of the countries, languages and culture of others
Your wrong deeds, your blood-stained hands
Look inside yourselves
You who live off the toil of others
Boiling water doesn't reflect your face,
Just peep into your conscience
And see your squalid face

हम तो एक मधुमक्खी के छत्ते जैसे थे....

अपने आपने तृप्त, संतुष्ट, आनंदी और स्वतंत्र

लेकिन बाहर से आये पररदेसीयों ने

हमें लूट लिया, बांट लिया...

खत्म कर दिया हमारा आशियाना....

कितने तुकडों मे बांटा हमें

कितनी जातीयों की दिवारें खड़ी कर दी

अब उनको तोडना तो इतना आसान नहीं

लेकिन असंभव भी नहीं....

अब जोडना है उन बांटे गये तुकडों को

जोडकर तुकडों को चांदी जैसा चमकाना है!

ऐसा भी समुहवादी, स्वातंत्र्य, समतापर आधारित

हमारी संस्कृती में अंदरसे एक है

ना हमें कोई तोड सकता है

पाणी के तरंगों में कितनी भी लाठी मारो

वो कभी तुकडोंमे टुटेगी नहीं

आदिम संस्कृती के दुनियां के सब लोग

एक थे, एक है और एक बनकर रहेंगे

हमारे हड्डी का सुजा बनाकर

सी लेंगे हरएक तुकडे

अपनी चमडी का आच्छादन लगाके

अपने खुन का रंग भर देंगे

ईन तुकडों में

और बनाकर रहेंगे

हमारा नया आशियाना

हमें सावध रहकर हाथ पकडकर चलना है

पांव फिसले ना, डर समझ लेना नहीं है

आपकी बुध्दि को भ्रमित कर रहे है.....

सावध रहो!!

अब तो काट पिटकर तोडमरोडकर खत्म कर रहे है

कभी नक्सली बनाकर, कभी चोर, लूटारू, डाकू बनाकर

उन्होंने सोचा नहीं...

दुसरों के टुकडों पर पलनेवाले

दुसरे का देश, भाषा, संस्कृती उजाडनेवाले

आपके काले धंदे, काले हाथ

देखलो झांक कर अपने आपमें

अरे दुसरखोरों.....!!

खौलते पाणी में कभी चेहरा नहीं देखा जाता

जरा अंर्तमन के समुंदर में झांक कर देखो

तुम्हारा बत्तर चेहरा !!